Thursday 8 March 2012

मनुष्य जीवन का लक्ष्य...?

  • हम यहाँ नित्य रहने के लिए नहीं आये हैं| जाने का समय भी निश्चित नहीं है| अचानक यहाँ से जाना पड़ेगा| अतः निश्चिन्त रहना उचित नहीं है - धोखा खाना पड़ सकता है|
  • हम यहाँ भोग भोगते रहने के लिए भी नहीं आये हैं बल्कि हमारा उद्देश्य परमात्म-प्राप्ति है| अतः जो समय बचा है उसे इस लक्ष की प्राप्ति में लगाना होगा|
  • हम समय के बल पर जी रहे हैं| समय सीमित है| यह बढ़ नहीं रहा बल्कि खर्च हो रहा है| जीवन का समय कितना बाकी है - इसका कुछ पता नहीं है|
  • वस्तु-सामग्री तो रहेगी (आती-जाती रहेगी)| पर हम नहीं रहेंगे (अर्थात यह शरीर नहीं रहेगा)| कम दौलत छोड़ कर जाएँ या ज्यादा छोड़ कर जाएँ - क्या अंतर पड़ेगा?
  • धन-दौलत जोड़ते-जोड़ते खुश (संतुष्ट) नहीं हो पाए तो छोड़ने में खुशी कैसे मिलेगी?
  • जोड़ते-जोड़ते (बगैर भोगे ही) हम चले जायेंगे| हमारे बाद उसे कौन भोगेगा? कब तक भोगेगा? वह भी पूरा भोग करने तक जीवित रह पायेगा या नहीं? कहीं हमारी तरह वह भी बीच में ही चल दिया तो....!
  • जिनके लिए छोड़ कर जायेंगे - उन्हें खुशी (संतुष्टि) मिलेगी या नहीं? (कुछ नहीं कहा जा सकता)|
  • समय देकर दौलत मिल जाती है (लोग दौलत के लिए अपना पूरा जीवन लगा देते हैं)| परन्तु क्या दौलत देकर (या लौटाकर) समय (वापस) मिल सकता है?
  • जो मिला हुआ है, वह सब बिछुड जाएगा| जो पहले हमारा नहीं था और जो आगे भी हमारा नहीं रहेगा, वह आज हमारा कैसे हो सकता है? यही भ्रम मिटाना आवश्यक है....!
  • जितने वर्ष बीत गए उतना शरीर बिछुड गया| यह शरीर निरंतर बीत रहा है... बिछुड रहा है यानी मर रहा है| चूंकि हमने यह बात पकड़ी हुयी है कि "हम जी रहे हैं", इसीलिये यह बात कि "हम मर रहे हैं" या कि "हम अपने अंत की ओर बढ़ रहे हैं" हमें समझ में नहीं आती है|
  • मिला हुआ सब कुछ बिछुड रहा है| न जन्म दिया हुआ बच्चा साथ रहेगा, न गोद लिया हुआ| सबसे वियोग का समय समीप आ रहा है - घर से, परिवार से, कुटुंब से, शरीर से, संसार से - अर्थात उन सभी से, जिनसे हमारा संयोग हुआ था|
  • बस एक परमात्व तत्व है जिससे हमारा संयोग नहीं हुआ था क्योंकि वह प्रारम्भ में भी था, अंत में भी होगा  और निश्चित ही आज भी वही है, जो हमारा है और जो कभी बिछुडेगा नहीं| जिससे संयोग ही नहीं हुआ उससे वियोग क्यों होगा|
  • यदि पूरा जीवन देकर भी उसकी प्राप्ति हो गयी तो फिर संसार की धन-दौलत किस लिए चाहिए?
  • मनुष्य जीवन का उद्देश्य है - परमात्म प्राप्ति| हमारा प्रत्येक कर्म, जीवन का प्रत्येक क्षण इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समर्पित हो जाए तो ही इस मानव जीवन का लक्ष सिद्ध होगा और यदि संसार में उलझ गए तो परमात्मा को प्राप्त करने में बिलंब हो जाएगा|
  • परमात्म तत्व सबको प्राप्त है| जहां आप हैं, वहीं परमात्मा भी हैं| वह हमसे दूर नहीं हैं| परन्तु संसार को महत्व देने के कारण हमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम परमात्मा से दूर आ गए हैं|
  • सब जगह परमात्मा है| सब प्राणियों में परमात्मा है| परमात्मा में ही सब हैं| परमात्मा ही संसार रूप में प्रकट हुए हैं| तत्व से देखा जाए तो विभिन्न प्रकार के आभूषण नहीं हैं - बल्कि सब स्वर्ण तत्व है| तत्व से देखने वाले की दृष्टि में सब कुछ परमात्मा ही है| जैसे बर्फ और जल: अलग-अलग दो तत्व नहीं हैं| वास्तव में दोनों में जल तत्व ही है| इसी प्रकार जो परमात्मा को देखता है उसे तत्व का ज्ञान है और जो संसार को देखता है वह भ्रम में पड़ा हुआ है, वह अज्ञान के अन्धकार में फंसा हुआ है| वह परमात्मा और स्वयं - दोनों को भूल चुका है| संसार के पदार्थों, सुख-भोगों की कामना करते-करते वह अपने असली स्वरूप से विमुख होकर जन्म-जन्मान्तरों तक भटकता रहता है| इस अन्धकारमय यात्रा में वह कितना दुःख और कितनी यातनाएं झेलता रहता है, इसका भी ज्ञान उसको नहीं होता|
  • मनुष्य जीवन का लक्ष है - इस अन्धकार से, अज्ञान से, जन्म-मृत्यु-ज़रा-व्याधि की यातनाओं से मुक्ति प्राप्त करना, अपने मूल स्वरुप को पहचानना और परमात्व-तत्व में विलीन होना....!