Friday 20 October 2017

जीवन हमेशा ढलान पर है...

“Life is always on a decline….” 
मनुष्य जीवन की स्थिति कुछ ऐसी है जैसे ढलान पर छोड़ दी गई कोई गोलाकार वस्तु (जैसे गेंद आदि), जिसे यदि रोका न जाए तो स्वतः ही नीचे (पतन) की ओर लुढ़क जाती है परन्तु ऊंचाई (श्रेष्ठता) की ओर स्वतः नहीं जा सकती; उसके लिए विशेष यत्न करना पड़ता है, अथवा कोई युक्ति लगानी पड़ती है| यही स्वभाव जल का भी है: नीचे की ओर बहना; परन्तु यदि उसे ऊपर की ओर उठना है तो अपने स्वरुप को परिवर्तित करके वाष्प का रूप धारण करना पड़ता है अन्यथा मनुष्य द्वारा किसी युक्ति के माध्यम से अर्थात् बौद्धिक सामर्थ्य के द्वारा ही उसे ऊपर की ओर ले जाया जा सकता है|
प्रत्येक मनुष्य को यह चुनाव करना होता है कि अपने जीवन को ऊंचाई अर्थात् श्रेष्ठता की ओर लेकर जाने का यत्न करे अथवा भौतिकता की ढलान पर नीचे की ओर लुढ़कने अर्थात् पतन की ओर जाने के लिए स्वतंत्र छोड़ दे| जीवन को ऊंचाई अर्थात् श्रेष्ठता की ओर ले जाना अत्यंत दुष्कर कार्य है| इसके लिए अपार आत्म-बल अर्थात् संकल्प की शक्ति तथा अभ्यास की आवश्यकता होती है, इसमें प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ता है| ऐसे लोग, जिनमें आत्म-बल की कमी होती है तथा प्रतिरोध का सामना करने का सामर्थ्य नहीं होता, नीचे (पतन) की ओर जाने के सरल विकल्प का चुनाव करते हैं|
आज मनुष्य के आत्मबल अर्थात् संकल्प की शक्ति में निरंतर शिथिलता आ रही है और जीवन को ढलान पर गेंद जैसी स्थिति में छोड़ देने का (सरल) विकल्प चुनने की प्रवृत्ति बढ़ रही है| सामान्य रूप से देखें तो चारों ओर लोगों को स्वयं अपने जीवन (शरीर, मन एवं चरित्र) के प्रति ही सबसे अधिक अत्याचार करते पाते हैं: तर्कहीन तुलना एवं अंतहीन  प्रतिस्पर्द्धा का दबाव, आवश्यकता से अधिक धन-संपत्ति संग्रह करने की प्रवृत्ति, बच्चों एवं किशोरों पर शिक्षा में उत्तम प्रदर्शन करने का दबाव, युवावस्था में मानसिक तनाव, महत्वाकांक्षाओं के कारण दांपत्य जीवन में तनाव एवं, घातक नशीले पदार्थों का प्रयोग, आत्मघात की प्रवृत्ति, धार्मिक उन्माद, आतंकवाद, पर्यावरण असंतुलन, वैश्विक स्तर पर रासायनिक शस्त्रों का संकलन और युद्ध की बढ़ती आशंका - यह सब एक प्रकार से मनुष्य के अस्त-व्यस्त जीवन का ही विस्तार है| संसार का वर्तमान स्वरुप मनुष्य द्वारा अपने जीवन को भौतिकता की ढलान पर छोड़ देने (अर्थात् जीवन के सञ्चालन के सम्बन्ध में सबसे सरल विकल्प का चुनाव करने) की प्रवृत्ति तथा इसके फलस्वरूप उसके व्यक्तिगत व सामजिक जीवन में फ़ैली अव्यवस्था का ही परिणाम है|
आज हमारी शिक्षा में जीवन मूल्यों की अनिवार्य शिक्षा का अभाव होता जा रहा है; व्यक्ति के (विशेष रूप से किशोरों तथा युवाओं के) जीवन को भौतिकता की ढलान पर नीचे (पतन) की ओर लुढ़कने से बचाने का दायित्व निभाने में आज का समाज भी लगभग असमर्थ सा हो चुका है; मनुष्य के भीतर अपने जीवन को ऊंचाई (श्रेष्ठता) की ओर ले जाने की प्रेरणा एवं अंतर्बोध क्षीण पड़ चुके हैं| यही कारण है कि स्थिति दिन प्रतिदिन गंभीर एवं चिताजनक होती जा रही है|