Monday 27 August 2018

क्या मनुष्य पशुता से पूर्णतः मुक्त हो चुका है?

ईश्वर की सृष्टि में मानवजाति शीर्ष पर है, और वही परम है
परन्तु प्रत्येक को अपना मानव होना स्वयं ही सिद्ध करना है
मानव अपनी बनाई हुई हर प्रकार की व्यवस्था से ऊपर है
अर्थात् वह समाज, वर्ण-व्यवस्था, जाति-उपजाति, पंथ-सम्प्रदाय, राज्य व सत्ता से भी ऊपर है
जीवनधारा शीर्ष से नीचे की ओर प्रवाहित हो रही है
अतः मानव सिद्ध होने के बाद आपके लिए एक संतान, नागरिक, पड़ोसी, मित्र-शत्रु, गुरु-शिष्य, शिक्षक-शिक्षार्थी, पति-पत्नी, माता-पिता, सेवक-स्वामी, व्यापारी-ग्राहक, चिकित्सक-रोगी, इंजीनियर, वकील, लेखक, वैज्ञानिक सिद्ध होना अत्यंत सुगम हो जाएगा|
परन्तु अधिकांश लोगों की यात्रा विपरीत दिशा में चल रही है| स्वयं को मानव सिद्ध किए बगैर वे स्वयं के द्वारा गढ़े गए विभिन्न पदों और स्थितियों पर आसीन हो जाते हैं और अपनी मानवता को ही भूल जाते हैं| चूंकि इनकी यात्रा श्रेष्ठता से निम्नता की ओर है इसीलिए धीरे-धीरे पशुता की ओर अग्रसर हो रहे हैं|
पशुता क्या है?
किसी प्राणी के पशु होने का प्रमाण केवल यही नहीं है कि उसके पास चार पैर हों, एक पूँछ हो, बड़े-बड़े दांत हों, सिर पर सींग हों, चीख कर या मौन संकेतों के माध्यम से संवाद करता हो| इन सबके अतिरिक्त भी कई प्रकार के सूचक हैं: झुण्ड (समूह) बनाकर रहना, समूह की शक्ति को आधार बनाकर दूसरों का शोषण करना, छीनना-झपटना, लोभ व लालच करना, सामग्री का अनावश्यक संग्रह करना, भय अथवा क्रोध के कारण दूसरों को क्षति पहुंचाना, अज्ञानता अथवा क्रोध के वश में स्वयं को क्षतिग्रस्त करना, अपने से शक्तिहीन प्राणियों पर अत्याचार करना, किसी की क्रिया के समतुल्य प्रतिक्रिया करना, दूसरों का अन्धानुकरण करना, संवेगी पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहना तथा अनेक प्रकार के यंत्रचालित व संवेगात्मक (Instinctive) कृत्य करना  – इत्यादि विभिन्न प्रकार की पशुवत् क्रियाएं हैं|
यह बात प्रमाणित है कि (मनुष्य के द्वारा प्रशिक्षित किए गए अथवा उसका अनुकरण करने वाले प्राणियों को छोड़कर) पशुओं ने निश्चित रूप से मनुष्य से अपना आचरण नहीं सीखा है| तो क्या मनुष्य ने इस प्रकार का आचरण पशुओं से सीख लिया है? वैसे भी दूसरों के आचरण को अपने जीवन में उतारने या उनका अनुगमन करने की प्रवृत्ति और योग्यता तो केवल मनुष्य में ही विद्यमान है| ऐसा प्रतीत होता है कि या तो मनुष्य अभी तक पशुवत् (स्वभावजनित) आचरण से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है अथवा उसने अपने आदि (नैसर्गिक) स्वभाव को पुनः ग्रहण कर लिया है और उसके अनुसार आचरण करने लगा है|
मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग व श्रेष्ठ सिद्ध करने वाले प्रमुख लक्षण हैं: उसकी कल्पना शक्ति तथा तर्क की सहायता से अपनी कल्पनाओं को प्रमाणित करने की योग्यता|
मनुष्यता का अति महत्वपूर्ण लक्षण है: अपने वर्तमान स्वरुप से ऊपर उठने तथा उन्नत स्वरुप में अभिव्यक्त होने की प्रवृत्ति, उत्कंठा एवं क्षमता
चिन्तन करने योग्य बात यह है कि यदि कोई मनुष्य इन अद्वितीय एवं श्रेष्ठ गुणों के होते हुए भी निरंतर स्वयं से निम्नतर योनियों के समतुल्य आचरण करता रहे और वैसा ही स्वभाव रखता हो तो उसे पशु से भिन्न कैसे माना जा सकता है?

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